Wednesday, December 21, 2016

रानी पदमिनी की कहानी


रानी पदमिनी
रानी पदमिनी के पिता का नाम गंधर्वसेन और माता का नाम चंपावती था | रानी पद्मिनी के पिता गंधर्वसेन सिंहल प्रान्त के राजा थे |बचपन में पदमिनी के पास “हीरामणी ” नाम का बोलता तोता हुआ करता था जिससे साथ उसमे अपना अधिकतर समय बिताया था | रानी पदमिनी बचपन से ही बहुत सुंदर थी और बड़ी होने पर उसके पिता ने उसका स्वयंवर आयोजित किया | इस स्वयंवर में उसने सभी हिन्दू राजाओ और राजपूतो को बुलाया | एक छोटे प्रदेश का राजा मलखान सिंह भी उस स्वयंवर में आया था | राजा रावल रतन सिंह भी पहले से ही अपनी एक पत्नी नागमती होने के बावजूद स्वयंवर में गया था | प्राचीन समय में राजा एक से अधिक विवाह करते थे ताकि वंश को अधिक उत्तराधिकारी मिले | राजा रावल रतन सिंह ने मलखान सिंह को स्वयंमर में हराकर पदमिनी से विवाह कर लिया | विवाह के बाद वो अपनी दुसरी पत्नी पदमिनी के साथ वापस चित्तोड़ लौट आया |

Padmini Palace
12वी और 13वी सदी में दिल्ली के सिंहासन पर दिल्ली सल्तनत का राज था | सुल्तान ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कई बार मेवाड़ पर आक्रमण किया | इन आक्रमणों में से एक आक्रमण अलाउदीन खिलजी ने सुंदर रानी पदमिनी को पाने के लिए किया था | ये कहानी अलाउदीन के इतिहासकारो ने किताबो में लिखी थी ताकि वो राजपूत प्रदेशो पर आक्रमण को सिद्ध कर सके |कुछ इतिहासकार इस कहानी को गलत बताते है क्योंकि ये कहानी मुस्लिम सूत्रों ने राजपूत शौर्य को उत्तेजित करने के लिए लिखी गयी थी | आइये इसकी पुरी कहानी आपको बताते है |

Rani Padmini and Rawal Ratan singh
उस समय चित्तोड़ पर राजपूत राजा रावल रतन सिंह का राज था | एक अच्छे शाषक और पति होने के अलावा रतन सिंह कला के संरक्षक भी थे |उनके ददरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे जिनमे से राघव चेतन संगीतकार भी एक था | राघव चेतन के बारे में लोगो को ये पता नही था कि वो एक जादूगर भी है | वो अपनी इस बुरी प्रतिभा का उपयोग दुश्मन को मार गिराने में उपयोग करता था | एक दिन राघव चेतनका बुरी आत्माओ को बुलाने का कृत्य रंगे हाथो पकड़ा जाता है |

Ratan singh and Raghav Chetan
इस बात का पता चलते ही रावल रतन सिंह ने उग्र होकर उसका मुह काला करवाकर और गधे पर बिठाकर अपने राज्य से निर्वासित कर दिया| रतन सिंह की इस कठोर सजा के कारण राघव चेतन उसका दुश्मन बन गया | अपने अपमान से नाराज होकर राघव चेतन दिल्ली चला गया जहा पर वो दिल्ली के सुल्तान अलाउदीन खिलजी को चित्तोड़ पर आक्रमण करने के लिए उकसाने का लक्ष्य लेकर गया |दिल्ली पहुचने पर राघव चेतन दिल्ली के पास एक जंगल में रुक गया जहा पर सुल्तान अक्सर शिकार के लिया आया करते थे |एक दिन जब उसको पता चला कि की सुल्तान का शिकार दल जंगल में प्रवेश कर रहा है तो राघव चेतन ने अपनी बांसुरी से मधुर स्वर निकालना शुरु कर दिया|

Raghav chetan and Alaaudin Khilji
जब राघव चेतन की बांसुरी के मधुर स्वर सुल्तान के शिकार दल तक पहुची तो सभी इस विचार में पड़ गये कि इस घने जंगल में इतनी मधुर बांसुरी कौन बजा सकता है | सुल्तान ने अपने सैनिको को बांसुरी वादक को ढूंड कर लाने को कहा | जब राघव चेतन को उसके सैनिको ने अलाउदीन खिलजी के समक्ष प्रस्तुत किया तो सुल्तान ने उसकी प्रशंशा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा | चालाक राघव चेतन ने उसी समय राजा से पूछा कि “आप मुझे जैसे साधारण संगीतकार को क्यों बुलाना चाहते है जबकि आपके पास कई सुंदर वस्तुए है ” | राघव चेतन की बात ना समझते हुए खिलजी ने साफ़ साफ़ बात बताने को कहा | राघव चेतन ने सुल्तान को रानी पदमिनी की सुन्दरता का बखान किया जिसे सुनकर खिलजी की वासना जाग उठी |अपनी राजधानी पहुचने के तुरंत बात उसने अपनी सेना को चित्तोड़ पर आक्रमण करने को कहा क्योंकि उसका सपना उस सुन्दरी को अपने हरम में रखना था |

Chittor Fort
बैचैनी से चित्तोड़ पहुचने के बाद अलाउदीन को चित्तोड़ का किला भारी रक्षण में दिखा | उस प्रसिद्द सुन्दरी की एक झलक पाने के लिए सुल्तान बेताब हो गया और उसने राजा रतन सिंह को ये कहकर भेजा कि वो  रानी पदमिनी को अपनी बहन समान मानता है और उससे मिलना चाहता है | सुल्तान की बात सुनते ही रतन सिंह ने उसके रोष से बचने और अपना राज्य बचाने के लिए उसकी बात से सहमत हो गया | रानी पदमिनी अलाउदीन को कांच में अपना चेहरा दिखाने के लिए राजी हो गयी | जब अलाउदीन को ये खबर पता चली कि रानी पदमिनी उससे मिलने को तैयार हो गयी है वो अपने चुनिन्दा योद्धाओ के साथ सावधानी से किले में प्रवेश कर गया |

Ran Padmini and Alauddin Khilji
रानी पदमिनी के सुंदर चेहरे को कांच के प्रतिबिम्ब में जब अलाउदीन खिलजी ने देखा तो उसने सोच लिया कि रानी पदमिनी को अपनी बनाकर रहेगा |वापस अपने शिविर में लौटते वक़्त अलाउदीन कुछ समय के लिए रतन सिंह के साथ चल रहा था | खिलजी ने मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया और पदमिनी की मांग करने लगा | चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने सुल्तान को हराने के लिए एक चाल चलते हुए खिलजी को संदेसा भेजा कि अगली सुबह पदमिनी को सुल्तान को सौप दिया जाएगा |

Sainik in Palki
अगले दिन सुबह भोर होते ही 150 पालकिया किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की | पालकिया वहा रुक गयी जहा पर रतन सिंह को बंदी बना रखा था |पालकियो को देखकर रतन सिंह ने सोचा, कि ये पालकिया किले से आयी है और उनके साथ रानी भी यहाँ आयी होगी ,वो अपने आप को बहुत अपमानित समझने लगा |उन पालकियो में ना ही उनकी रानी और ना ही दासिया थी और अचानक से उसमे से पूरी तरह से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा दिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर तेजी से घोड़ो पर पर किले की ओर भाग गये | गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये जबकि बादल , रतन सिंह को सुरक्षित किले में पहुचा दिया |


Gora and Badal fight Khilji
जब सुल्तान को पता चला कि उसके योजना नाकाम हो गयी , सुल्तान ने गुस्से में आकर अपनी सेना को चित्तोड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया | सुल्तान के सेना ने किले में प्रवेश करने की कड़ी कोशिश की लेकिन नाकाम रहा |अब खिलजी ने किले की घेराबंदी करने का निश्चय किया | ये घेराबंदी इतनी कड़ी थी कि किले में खाद्य आपूर्ति धीरे धीरे समाप्त हो गयी | अंत में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और उसके सैनिको से लड़ते हुए रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गया | ये सुचना सुनकर पद्मिनी ने सोचा कि अब सुल्तान की सेना चित्तोड़ के सभी पुरुषो को मार देगी | अब चित्तोड़ की औरतो के पास दो विकल्प थे या तो वो जौहर के लिए प्रतिबद्ध हो या विजयी सेना के समक्ष अपना निरादर सहे |

Jauhar Rani Padmini in Chittorgarh
सभी महिलाओ का पक्ष जौहर की तरह था | एक विशाल चिता जलाई गयी और रानी पदमिनी के बाद चित्तोड़ की सारी औरते उसमे कूद गयी और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गये | अपनी महिलाओ की मौत पर चित्तोड़ के पुरुष के पास जीवन में कुछ नही बचा था | चित्तोड़ के सभी पुरुषो ने साका प्रदर्शन करने का प्रण लिया जिसमे प्रत्येक सैनिक केसरी वस्त्र और पगड़ी पहनकर दुश्मन सेना से तब तक लड़े जब तक कि वो सभी खत्म नही हो गये | विजयी सेना ने जब किले में प्रवेश किया तो उनको राख और जली हुई हड्डियों के साथ सामना हुआ |जिन महिलाओ ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोकगीतों में जीवित है जिसमे उनके गौरवान्वित कार्य का बखान किया जाता है |

राजपूतों की वंशावली

राजपूतों की वंशावली

"दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,

चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."


अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.स्वांगवंश १०.वैस

अग्निवंश की चार शाखायें:-

१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.विसेन७.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला

चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.

क्षत्रिय जातियो की सूची

क्रमांकनामगोत्रवंशस्थान और जिला
१.सूर्यवंशीभारद्वाजसूर्यबुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
२.गहलोतबैजवापेणसूर्यमथुरा कानपुर और पूर्वी जिले
३.सिसोदियाबैजवापेडसूर्यमहाराणा उदयपुर स्टेट
४.कछवाहामानवसूर्यमहाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
५.राठोडकश्यपसूर्यजोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
६.सोमवंशीअत्रयचन्दप्रतापगढ और जिला हरदोई
७.यदुवंशीअत्रयचन्दराजकरौली राजपूताने में
८.भाटीअत्रयजादौनमहारजा जैसलमेर राजपूताना
९.जाडेचाअत्रययदुवंशीमहाराजा कच्छ भुज
१०.जादवाअत्रयजादौनशाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११.तोमरव्याघ्रचन्दपाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२.कटियारव्याघ्रतोंवरधरमपुर का राज और हरदोई
१३.पालीवारव्याघ्रतोंवरगोरखपुर
१४.परिहार/बरगाहीकौशल्यअग्निइतिहास में जानना चाहिये
१५.तखीकौशल्यपरिहारपंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१६.पंवारवशिष्ठअग्निमालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१७.सोलंकीभारद्वाजअग्निराजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१८.चौहानवत्सअग्निराजपूताना पूर्व और सर्वत्र
१९.हाडावत्सचौहानकोटा बूंदी और हाडौती देश
२०.खींचीवत्सचौहानखींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२१.भदौरियावत्सचौहाननौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२२.देवडावत्सचौहानराजपूताना सिरोही राज
२३.शम्भरीवत्सचौहाननीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२४.बच्छगोत्रीवत्सचौहानप्रतापगढ सुल्तानपुर
२५.राजकुमारवत्सचौहानदियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२६.पवैयावत्सचौहानग्वालियर
२७.गौर,गौडभारद्वाजसूर्यशिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२८.वैसभारद्वाजचन्द्रउन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
२९.गेहरवारकश्यपसूर्यमाडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
३०.सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियजगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३१.कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियपूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३२.बिसैनवत्सब्रह्मक्षत्रियगोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं
३३.निकुम्भवशिष्ठसूर्यगोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३४.सिरसेतभारद्वाजसूर्यगाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३५.कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाज,सूर्यबरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३६.वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रमथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३७.बढगूजरवशिष्ठसूर्यअनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३८.झालामरीच कश्यपचन्द्रधागधरा मेवाड झालावाड कोटा
३९.गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियराजा अर्गल फ़तेहपुर
४०.रैकवारभारद्वाजसूर्यबहरायच सीतापुर बाराबंकी
४१.करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्रबलिया फ़ैजाबाद अवध
४२.चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीगिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
४३.जनवारकौशल्यसोलंकी शाखाबलरामपुर अवध के जिलों में
४४.बहरेलियाभारद्वाजवैस की गोद सिसोदियारायबरेली बाराबंकी
४५.दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाउन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
४६.सिलारशौनिकचन्द्रसूरत राजपूतानी
४७.सिकरवारभारद्वाजबढगूजरग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
४८.सुरवारगर्गसूर्यकठियावाड में
४९.सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशकाठियावाड
५०.मोरीब्रह्मगौतमसूर्यमथुरा आगरा धौलपुर
५१.टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमैनपुरी और पंजाब
५२.गुप्तगार्ग्यचन्द्रअब इस वंश का पता नही है
५३.कौशिककौशिकचन्द्रबलिया आजमगढ गोरखपुर
५४.भृगुवंशीभार्गवचन्द्रवनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
५५.गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियनृसिंहपुर सुल्तानपुर
५६.पडियारिया,देवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियराजपूताना
५७.ननवगकौशल्यचन्द्रजौनपुर जिला
५८.वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रबुन्देलखन्ड बांदा वनारस
५९.जैसवारकश्यपयदुवंशीमिर्जापुर एटा मैनपुरी
६०.चौलवंशभारद्वाजसूर्यदक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६१.निमवंशीकश्यपसूर्यसंयुक्त प्रांत
६२.वैनवंशीवैन्यसोमवंशीमिर्जापुर
६३.दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियकाठियावाड राजपूताना
६४.पुण्डीरकपिलब्रह्मक्षत्रियपंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
६५.तुलवाआत्रेयचन्द्रराजाविजयनगर
६६.कटोचकश्यपभूमिवंशराजानादौन कोटकांगडा
६७.चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखामलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६८.अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतखेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
६९.डौडियावशिष्ठपंवार शाखाबुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७०.गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाकाठियावाड
७१.बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखाबुन्देलखंड के रजवाडे
७२.काठीकश्यपगहरवारशाखाकाठियावाड झांसी बांदा
७३.जोहियापाराशरचन्द्रपंजाब देश मे
७४.गढावंशीकांवायनचन्द्रगढावाडी के लिंगपट्टम में
७५.मौखरीअत्रयचन्द्रप्राचीन राजवंश था
७६.लिच्छिवीकश्यपसूर्यप्राचीन राजवंश था
७७.बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यअब पता नहीं चलता है
७८.पालकश्यपसूर्ययह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
७९.सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रिययह वंश भी भारत में बिखर गया है
८०.कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियदक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८१.पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियदक्षिण में मराठा के पास में है
८२.बाणवंशकश्यपअसुरवंशश्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८३.काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थाअब पता नही मिलता है
८४.सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य था,अब पता नही मिलता है
८५.दहियाकश्यपराठौड शाखामारवाड में जोधपुर
८६.जेठवाकश्यपहनुमानवंशीराजधूमली काठियावाड
८७.मोहिलवत्सचौहान शाखामहाराष्ट्र मे है
८८.बल्लाभारद्वाजसूर्यकाठियावाड मे मिलते हैं
८९.डाबीवशिष्ठयदुवंशराजस्थान
९०.खरवडवशिष्ठयदुवंशमेवाड उदयपुर
९१.सुकेतभारद्वाजगौड की शाखापंजाब में पहाडी राजा
९२.पांड्यअत्रयचन्दअब इस वंश का पता नहीं
९३.पठानियापाराशरवनाफ़रशाखापठानकोट राजा पंजाब
९४.बमटेलाशांडल्यविसेन शाखाहरदोई फ़र्रुखाबाद
९५.बारहगैयावत्सचौहानगाजीपुर
९६.भैंसोलियावत्सचौहानभैंसोल गाग सुल्तानपुर
९७.चन्दोसियाभारद्वाजवैससुल्तानपुर
९८.चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियजौनपुर
९९.धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियआगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१००.धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियजौनपुर आजमगढ वनारस
१०१.धेकाहाकश्यपपंवार की शाखाभोजपुर शाहाबाद
१०२.दोबर(दोनवर)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०३.हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखाआजमगढ
१०४.जायसकश्यपराठौड की शाखारायबरेली मथुरा
१०५.जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रबुलन्दशहर
१०६.जसावतमानव्यकछवाह शाखामथुरा आगरा
१०७.जोतियाना(भुटियाना)मानव्यकश्यप,कछवाह शाखामुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०८.घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखालुधियाना होशियारपुर जालन्धर
१०९.कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियअवध के जिलों में
११०.काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर आजमगढ
१११.कासिबकश्यपकछवाह शाखाशाहजहांपुर
११२.किनवारकश्यपसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार में
११३.बरहियागौतमसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार
११४.लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखाबलिया गाजी पुर शाहाबाद
११५.मौनसमानव्यकछवाह शाखामिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११६.नगबकमानव्यकछवाह शाखाजौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११७.पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाआजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११८.रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखापूर्व अवध में
११९.सिंहेलकश्यपसूर्यआजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२०.तरकडकश्यपदीक्षित शाखाआगरा मथुरा
१२१.तिसहियाकौशल्यपरिहारइलाहाबाद परगना हंडिया
१२२.तिरोताकश्यपतंवर की शाखाआरा शाहाबाद भोजपुर
१२३.उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियआजमगढ गोरखपुर
१२४.भालेवशिष्ठपंवारअलीगढ
१२५.भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखारायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२६.जैवारव्याघ्रतंवर की शाखादतिया झांसी बुन्देलखंड
१२७.सरगैयांव्याघ्रसोमवंशहमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२८.किसनातिलअत्रयतोमरशाखादतिया बुन्देलखंड
१२९.टडैयाभारद्वाजसोलंकीशाखाझांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३०.खागरअत्रययदुवंश शाखाजालौन हमीरपुर झांसी
१३१.पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखाबुन्देलखंड
१३२.सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखाबुन्देलखंड
१३३.खींचरवत्सचौहान शाखाफ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३४.खातीकश्यपदीक्षित शाखाबुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३५.आहडियाबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३६.उदावतबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३७.उजैनेवशिष्ठपंवारआरा डुमरिया
१३८.अमेठियाभारद्वाजगौडअमेठी लखनऊ सीतापुर
१३९.दुर्गवंशीकश्यपदीक्षितराजा जौनपुर राजाबाजार
१४०.बिलखरियाकश्यपदीक्षितप्रतापगढ उमरी राजा
१४१.डोमराकश्यपसूर्यकश्मीर राज्य और बलिया
१४२.निर्वाणवत्सचौहानराजपूताना (राजस्थान)
१४३.जाटूव्याघ्रतोमरराजस्थान,हिसार पंजाब
१४४.नरौनीमानव्यकछवाहाबलिया आरा
१४५.भनवगभारद्वाजकनपुरियाजौनपुर
१४६.गिदवरियावशिष्ठपंवारबिहार मुंगेर भागलपुर
१४७.रक्षेलकश्यपसूर्यरीवा राज्य में बघेलखंड
१४८.कटारियाभारद्वाजसोलंकीझांसी मालवा बुन्देलखंड
१४९.रजवारवत्सचौहानपूर्व मे बुन्देलखंड
१५०.द्वारव्याघ्रतोमरजालौन झांसी हमीरपुर
१५१.इन्दौरियाव्याघ्रतोमरआगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५२.छोकरअत्रययदुवंशअलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५३.जांगडावत्सचौहानबुलन्दशहर पूर्व में झांसी

छत्रपति शिवाजी

छत्रपति शिवाजी
भारतभूमि हमेशा ही वीरों की जननी रही है. यहां समय-समय पर ऐसे वीर हुए जिनकी वीर गाथा सुन हर भारतवासी का सीना गर्व से तन जाता है. भारतभूमि के महान वीरों में एक नाम वीर छत्रपति शिवाजी का भी आता है जिन्होंने अपने पराक्रम से औरंगजेब जैसे महान मुगल शासक की सेना को भी परास्त कर दिया था. एक महान, साहसी और चतुर हिंदू शासक के रूप में छत्रपति शिवाजी को यह जग हमेशा याद करेगा.

कम साधन होने के बाद भी छत्रपति शिवाजी ने अपनी सेना को एक संयोजित ढंग से रण में माहिर बनाया. अपनी बहादुरी, साहस एवं चतुरता से उन्‍होंने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट की विशाल सेना से कई बार जोरदार टक्कर ली और अपनी शक्ति को बढ़ाया. छत्रपति शिवाजी कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे. वे कई लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर उन्‍हें पुन हिन्‍दू धर्म में लाए. छत्रपति शिवाजी बहुत ही चरित्रवान व्‍यक्ति थे. वे महिलाओं का बहुत आदर करते थे. महिलाओं के साथ दुर्व्‍यवहार करने वालों और निर्दोष व्‍यक्तियों की हत्‍या करने वालों को कड़ा दंड देते थे.

छत्रपति शिवाजी की अभूतपूर्व सफलता का रहस्य मात्र उनकी वीरता एवं शौर्य में निहित नहीं है, अपितु उनकी आध्यात्मिकता का भी उनकी उपलब्धियों में बहुत बडा योगदान है. उल्लेखनीय है कि मराठा सरदार से छत्रपति बनने के मार्ग में बहुत सारी बाधाएं आईं किंतु उन सबका उन्मूलन करते हुए वह अपने लक्ष्य पर पहुंच कर ही रहे.

औरंगजेब भी था शिवाजी के आगे फेल

मुगल बादशाह औरंगजेब अपनी विराट शाही सेना के बावजूद उनका बाल बांका भी नहीं कर सका और उसके एक बडे भूभाग पर उन्होंने अधिकार प्राप्त कर लिया. छल से उन्हें और उनके किशोर लडके को आगरे में कैद करने में औरंगजेब ने सफलता प्राप्त की, तो शिवाजी अपनी बुद्धिमता और अपनी इष्ट देवी तुलजा भवानी की कृपा के बल पर बंधन मुक्त होने में सफल हो गए. असहाय जनता के लिए शिवाजी पहले-पहल एक समर्थ रक्षक बनकर उभरे. छत्रपति निस्संदेह भारत-माता के प्रथम सुपुत्र सिद्ध हुए, जिन्होंने देशवासियों के अंदर नवीन उत्साह का संचार किया.

शिवाजी यथार्थ में एक आदर्शवादी थे. उन्होंने मुगलों, बीजापुर के सुल्तान, गोवा के पुर्तग़ालियों और जंजीरा स्थित अबीसीनिया के समुद्री डाकुओं के प्रबल प्रतिरोध के बावजूद दक्षिण में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना की. उन्हीं के प्रयासों से भविष्य में विशाल मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई. उनके गुरू दक्षिण भारत में एक महान संत गुरु रामदास थे. शिवाजी का गुरू प्रेम भी जगप्रसिद्ध था.

शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई. आज भी देश में छत्रपति शिवाजी का नाम एक महान सेनानी और लड़ाके के रूप में लिया जाता है जिनकी रणनीति का अध्ययन आज भी लोग करते हैं.

History Of Rajputana

राजपूत राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल। यह नाम राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान में राजपूतों के अनेक किले हैं। राठौर, कुशवाहा, सिसोदिया, चौहान, जादों, पंवार आदि इनके प्रमुख गोत्र हैं। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी, किन्तु बाद में इन वर्णों के अंतर्गत अनेक जातियाँ बन गईं। क्षत्रिय वर्ण की अनेक जातियों और उनमें समाहित कई देशों की विदेशी जातियों को कालांतर में राजपूत जाति कहा जाने लगा। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। राजपूतों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान का नाम सबसे ऊंचा है।
राजपूत शब्द का अर्थ होता है राजा का पुत्र। राजा से राज और पुत्र से पूत आया है, यानि राजा का पुत्र से राजपूत | राजपूत एक हिँदी शब्द है जिसे हम संस्कृत मेँ राजपुत्र कहते हैँ।राजपुत सामान्यतः क्षत्रिय वर्ण मे आते है|राजस्थानी मे ये रजपुत के नाम से भी जाने जाते है। ।
Sarvesh Rana  पुत्र श्री वीरेन्द्र सिह राणा ! जन्म १८ अक्टूब्र १९८४ सहारनपुर उत्त्तर प्रदेश .बड़े भाई सुधीर राणा और एक बड़ी बहन सीमा राणा से छोटे होते हुए भी सर्वेश राणा ने अपने जीवन मे बहुत मुस्किलो और कठिनाइयो का सामना करते हुए अपने जीवन को सुखमये बनाया , आपने अपने पिताजी श्री वीरेन्द्र सिह राणा ओर अपनी माता जी श्रीमती किरण बाला के चरित्र भगवान मे अत्यधिक भावना और सदेव अच्छाई के मार्ग पर चलते हुए आपने भी भगवान मे आस्था होने के साथ साथ आपने अपने धर्म गुरु के गयान गंगा मे डुबकी लगा कर और कई व्यक्तियो के जीवन को सुलभ ओर खुशल बनाया . दिनाक २६-फ़रवरी-२००९ को आपके जीवन मे नव ज्योति प्रजलित हुई ओर ज्योति राजपूत नामक कन्या से विवाह कर आप विवाह सूत्र बंधन मे बंद गये ! विवाह उपरांत आपके जीवन मे जैसे ख़ुसीयो की बेला खिल गई हो , तत उपरांत १०-जनवरी -२०१० को आपके घर मे आपकी धर्म पत्नी ज्योति राणा ने एक पुत्री को जन्म दिया , आपकी पुत्री अपने जन्म से ही अत्यधिक सुंदर और कोमल रूप से है . आपकी पुत्री का नाम आपके बड़े भाई सुधीर राणा ने अपनी पुत्री के नाम तनुश्री के स्वरूप नव जनमात पुत्री समान भतीजी का नाम ज्यश्री रखा ओर वर्तमान मे भारतिया रेल मे डाटा बेश इंजिनियर और साथ ही एम ए राजनीति शस्त्रा से आगे कि शिक्षा को सुचारू रूप से एम एम एच कॉलेज से प्राप्त कर रहे हो . आप गाज़ियाबाद जिले मे भारतिया जनता पार्टी के विजय नगर मंडल मे मंत्री है . आप पिछले १२ वर्षो से भारतिया जनता पार्टी के सक्रिया कार्यकर्ता के रूप मे योगदान दे रहे है ..

राजपूतों की उत्पत्ति

इन राजपूत वंशों की उत्पत्ति के विषय में विद्धानों के दो मत प्रचलित हैं- एक का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी है, जबकि दूसरे का मानना है कि, राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय है। 12वीं शताब्दी के बाद् के उत्तर भारत के इतिहास को टोड ने ‘राजपूत काल’ भी कहा है। कुछ इतिहासकारों ने प्राचीन काल एवं मध्य काल को ‘संधि काल’ भी कहा है। इस काल के महत्वपूर्ण राजपूत वंशों में राष्ट्रकूट वंश, चालुक्य वंश, चौहान वंश, चंदेल वंश, परमार वंश एवं गहड़वाल वंश आदि आते हैं।
विदेशी उत्पत्ति के समर्थकों में महत्वपूर्ण स्थान ‘कर्नल जेम्स टॉड’ का है। वे राजपूतों को विदेशी सीथियन जाति की सन्तान मानते हैं। तर्क के समर्थन में टॉड ने दोनों जातियों (राजपूत एवं सीथियन) की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की समानता की बात कही है। उनके अनुसार दोनों में रहन-सहन, वेश-भूषा की समानता, मांसाहार का प्रचलन, रथ के द्वारा युद्ध को संचालित करना, याज्ञिक अनुष्ठानों का प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का प्रचलन आदि से यह प्रतीत होता है कि राजपूत सीथियन के ही वंशज थे।

विलियम क्रुक ने ‘कर्नल जेम्स टॉड’ के मत का समर्थन किया है। ‘वी.ए. स्मिथ’ के अनुसार शक तथा कुषाण जैसी विदेशी जातियां भारत आकर यहां के समाज में पूर्णतः घुल-मिल गयीं। इन देशी एवं विदेशी जातियों के मिश्रण से ही राजपूतों की उत्पत्ति हुई।
भारतीय इतिहासकारों में ‘ईश्वरी प्रसाद’ एवं ‘डी.आर. भंडारकर’ ने भारतीय समाज में विदेशी मूल के लोगों के सम्मिलित होने को ही राजपूतों की उत्पत्ति का कारण माना है। भण्डारकर, कनिंघम आदि ने इन्हे विदेशी बताया है। । इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे, फिर भी उनमें विदेशी रक्त का मिश्रण अवश्य था। अतः वे न तो पूर्णतः विदेशी थे, न तो पूर्णत भारतीय।

इतिहास

राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है।कुछ राजपुतवन्श अपने को भगवान श्री राम के वन्शज बताते है।राजस्थान का अशिकन्श भाग ब्रिटिश काल मे राजपुताना के नाम से जाना जाता था।

 राजपूतोँ के वँश

“दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण, भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान, चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”
अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।
सूर्य वंश की दस शाखायें:-
१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने
चन्द्र वंश की दस शाखायें:-
१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.स्वांगवंश १०.वैस
अग्निवंश की चार शाखायें:-
१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.
ऋषिवंश की बारह शाखायें:-
१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.विसेन७.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-
१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर

राजपूत जातियो की सूची

# क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला
१. सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
२. गहलोत बैजवापेण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले
३. सिसोदिया बैजवापेड सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट
४. कछवाहा मानव सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
५. राठोड कश्यप सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
६. सोमवंशी अत्रय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई
७. यदुवंशी अत्रय चन्द राजकरौली राजपूताने में
८. भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना
९. जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज
१०. जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११. तोमर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२. कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई
१३. पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर
१४. परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिये
१५. तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१६. पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१७. सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१८. चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र
१९. हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश
२०. खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२१. भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२२. देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज
२३. शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२४. बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर
२५. राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२६. पवैया वत्स चौहान ग्वालियर
२७. गौर,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२८. वैस भारद्वाज चन्द्र उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
२९. गेहरवार कश्यप सूर्य माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
३०. सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३१. कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३२. बिसैन वत्स ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं
३३. निकुम्भ वशिष्ठ सूर्य गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३४. सिरसेत भारद्वाज सूर्य गाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३५. कटहरिया वशिष्ठ्याभारद्वाज, सूर्य बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३६. वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३७. बढगूजर वशिष्ठ सूर्य अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३८. झाला मरीच कश्यप चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा
३९. गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर
४०. रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी
४१. करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध
४२. चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी गिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
४३. जनवार कौशल्य सोलंकी शाखा बलरामपुर अवध के जिलों में
४४. बहरेलिया भारद्वाज वैस की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी
४५. दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
४६. सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी
४७. सिकरवार भारद्वाज बढगूजर ग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
४८. सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में
४९. सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड
५०. मोरी ब्रह्मगौतम सूर्य मथुरा आगरा धौलपुर
५१. टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब
५२. गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है
५३. कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया आजमगढ गोरखपुर
५४. भृगुवंशी भार्गव चन्द्र वनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
५५. गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय नृसिंहपुर सुल्तानपुर
५६. पडियारिया, देवल,सांकृतसाम ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना
५७. ननवग कौशल्य चन्द्र जौनपुर जिला
५८. वनाफ़र पाराशर,कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस
५९. जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी
६०. चौलवंश भारद्वाज सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६१. निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत
६२. वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर
६३. दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना
६४. पुण्डीर कपिल ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
६५. तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर
६६. कटोच कश्यप भूमिवंश राजानादौन कोटकांगडा
६७. चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६८. अहवन वशिष्ठ चावडा,कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
६९. डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७०. गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड
७१. बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे
७२. काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा
७३. जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे
७४. गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में
७५. मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था
७६. लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था
७७. बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है
७८. पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
७९. सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है
८०. कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८१. पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है
८२. बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८३. काकुतीय भारद्वाज चन्द्र,प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है
८४. सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र,पाचीन सूर्य था, अब पता नही मिलता है
८५. दहिया कश्यप राठौड शाखा मारवाड में जोधपुर
८६. जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड
८७. मोहिल वत्स चौहान शाखा महाराष्ट्र मे है
८८. बल्ला भारद्वाज सूर्य काठियावाड मे मिलते हैं
८९. डाबी वशिष्ठ यदुवंश राजस्थान
९०. खरवड वशिष्ठ यदुवंश मेवाड उदयपुर
९१. सुकेत भारद्वाज गौड की शाखा पंजाब में पहाडी राजा
९२. पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं
९३. पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब
९४. बमटेला शांडल्य विसेन शाखा हरदोई फ़र्रुखाबाद
९५. बारहगैया वत्स चौहान गाजीपुर
९६. भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर
९७. चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर
९८. चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर
९९. धाकरे भारद्वाज(भृगु) ब्रह्मक्षत्रिय आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१००. धन्वस्त यमदाग्नि ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर आजमगढ वनारस
१०१. धेकाहा कश्यप पंवार की शाखा भोजपुर शाहाबाद
१०२. दोबर(दोनवर) वत्स या कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०३. हरद्वार भार्गव चन्द्र शाखा आजमगढ
१०४. जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा
१०५. जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर
१०६. जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा
१०७. जोतियाना(भुटियाना) मानव्य कश्यप,कछवाह शाखा मुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०८. घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर
१०९. कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में
११०. काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ
१११. कासिब कश्यप कछवाह शाखा शाहजहांपुर
११२. किनवार कश्यप सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार में
११३. बरहिया गौतम सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार
११४. लौतमिया भारद्वाज बढगूजर शाखा बलिया गाजी पुर शाहाबाद
११५. मौनस मानव्य कछवाह शाखा मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११६. नगबक मानव्य कछवाह शाखा जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११७. पलवार व्याघ्र सोमवंशी शाखा आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११८. रायजादे पाराशर चन्द्र की शाखा पूर्व अवध में
११९. सिंहेल कश्यप सूर्य आजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२०. तरकड कश्यप दीक्षित शाखा आगरा मथुरा
१२१. तिसहिया कौशल्य परिहार इलाहाबाद परगना हंडिया
१२२. तिरोता कश्यप तंवर की शाखा आरा शाहाबाद भोजपुर
१२३. उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर
१२४. भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ
१२५. भालेसुल्तान भारद्वाज वैस की शाखा रायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२६. जैवार व्याघ्र तंवर की शाखा दतिया झांसी बुन्देलखंड
१२७. सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२८. किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड
१२९. टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३०. खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसी
१३१. पिपरिया भारद्वाज गौडों की शाखा बुन्देलखंड
१३२. सिरसवार अत्रय चन्द्र शाखा बुन्देलखंड
१३३. खींचर वत्स चौहान शाखा फ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३४. खाती कश्यप दीक्षित शाखा बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३५. आहडिया बैजवापेण गहलोत आजमगढ
१३६. उदावत बैजवापेण गहलोत आजमगढ
१३७. उजैने वशिष्ठ पंवार आरा डुमरिया
१३८. अमेठिया भारद्वाज गौड अमेठी लखनऊ सीतापुर
१३९. दुर्गवंशी कश्यप दीक्षित राजा जौनपुर राजाबाजार
१४०. बिलखरिया कश्यप दीक्षित प्रतापगढ उमरी राजा
१४१. डोमरा कश्यप सूर्य कश्मीर राज्य और बलिया
१४२. निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान)
१४३. जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब
१४४. नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा
१४५. भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर
१४६. गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर
१४७. रक्षेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड
१४८. कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड
१४९. रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड
१५०. द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर
१५१. इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५२. छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५३. जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी