राव चंद्रसेन को मुगलकाल का मारवाड़ का महान सैनानी कहा गया है ।राव चंद्रसेन मारवाड़ (जोधपुर) के मालदेव के पुत्र थे ।इनको अपने भाइयों -उदय सिंह और राम के साथ उत्तराधिकार का युद्ध लड़ना पड़ा ।राव चंद्रसेन को अपने शासन के लगभग 19 वर्ष तक अपनी मातृ भूमि की आजादी के लिए जूझते और ठोकर खाते रहे और अंत में देश की आजादी के लिए ही उन्होंने अपने प्राण भी गंवा दिए ।दुर्भाग्यवश ,चंद्रसेन सम्बन्धी ऐतिहासिक सामग्री को छिपाये जाने के फलस्वरूप चंद्रसेन का व्यक्तित्व प्रकाश में नहीं आ पाया ,लेकिन आधुनिक अनुसंधानों ने आखिर इस विस्मर्त सेनानी को सामने ला ही दिया ।इसी लिए अनेक इतिहासकार चंद्रसेन को मारवाड़ का भुला हुआ नायक भी कहते है ।
जन्मराव चन्द्रसेन का जन्म विक्रम संवत 1598 श्रावण शुक्लाअष्टमी (30 जुलाई, 1541 ई.) को हुआ था।
भाइयों का विद्रोह---
राव मालदेव ने अपने जीवन काल में ही चंद्रसेन के बड़े भाइयों --राम सिंह और उदय सिंह को उत्तराधिकार से वंचित करके चंद्रसेन को अपना उत्तराधिकारी बना कर जोधपुर में गृहयुद्ध के बीज बो दिए थे ।राव चंद्रसेन स्वाभिमानी और वीर योद्धा थे ।वे जोधपुर की गद्दी पर बैठते ही इनके बड़े भाइयों राम और उदयसिंह ने राजगद्दी के लिए विद्रोह कर दिया। मारवाड़ के बहुत से राजपूत सरदारों ने इन तीनों विद्रोही भाइयों को अपने अपने तरीके से सहायता दी ।चंद्रसेन भाइयों के विद्रोह को तो दवाने में सफल रहे लेकिन असंतुस्ट भाई चंद्रसेन से बदला लेने के लिए अवसर और सहारे की तलाश में रहे ।चंद्रसेन के दोनों भाईयों ने उनके विरुद्ध अकबर के दरबार में सहायता की प्रार्थना के लिए जा पहुंचे ।वास्तव में चंद्रसेन के दोनों भाइयों ने मुगलों के साथ गठबंधन कर लिया ।
सम्राट अकबर की नीति ही यही थी कि राजपूतों की फुट से पूरा पूरा राजनितिक लाभ उठाया जाय ।अकबर नेचंद्रसेन और उनके भाइयों की फूट का लाभ लेने के लिए नागौर के मुग़ल हाकिम हुसैन कुलीबेग को सेना देकर 1564 में जोधपुर पर आक्रमण कर दिया जिसमें चंद्रसेन के भाई भी सामिल थे ।चंद्रसेन को जोधपुर का किला खाली करके भाद्राजून चला जाना पड़ा ।
मुग़लों से संघर्ष---
जोधपुर छूटने के बाद साधन हीन चंद्रसेन की आर्थिक स्थिति निरंतर बिगड़ती गई ।परिस्थितियों वश चंद्रसेन ने यह उचित समझा कि समझा कि अकबर के साथ सन्धि कर ली जाय ।सन् 1570 ई0को बादशाह अकबर जियारत करनेअजमेर आया वहां से वह नागौर पहुंचा, जहाँ सभी राजपूतराजा उससे मिलने पहुंचे। राव चन्द्रसेन भी नागौर पहुंचा, पर वह अकबर की फूट डालो नीति देखकर वापस लौट आया। उस वक्त उसका सहोदर उदयसिंह भी वहां उपस्थित था, जिसे अकबर ने जोधपुर के शासक के तौर पर मान्यता दे दी। कुछ समय पश्चात मुग़ल सेना ने भाद्राजूण पर आक्रमण कर दिया, पर राव चन्द्रसेन वहां से सिवाना के लिए निकल गए। सिवाना से ही राव चन्द्रसेन ने मुग़ल क्षेत्रों, अजमेर, जैतारण,जोधपुर आदि पर छापामार हमले शुरू कर दिए। राव चन्द्रसेन ने दुर्ग में रहकर रक्षात्मक युद्ध करने के बजाय पहाड़ों में जाकर छापामार युद्ध प्रणाली अपनाई। अपने कुछ विश्वस्त साथियों को क़िले में छोड़कर खुद पिपलोद के पहाड़ों में चले गए और वहीं से मुग़ल सेना पर आक्रमण करके उनकी रसद सामग्री आदि को लूट लेते। बादशाह अकबर ने उनके विरुद्ध कई बार बड़ी सेनाएं भेजीं, पर अपनी छापामार युद्ध नीति के बल पर राव चन्द्रसेन अपने थोड़े से सैनिको के दम पर ही मुग़ल सेना पर भारी रहे।2 वर्ष तक युद्ध होता रहा और राठौड़ों ने ऐसा सामना किया की जनवरी 1575 ई0 में आगरा से और सेना भेजनी पडी ।परन्तु इस बार भी मुगलों को सफलता नहीं मिली जिसके कारण अकबर बड़ा नाराज हुआ ।इसके बाद जलाल खान के नेतृत्व में सेना भेजी परन्तु जलाल खान स्वयं मार डाला गया ।चौथी बार अकबर ने शाहबाज खां को भेजा जिसने 1576 ई0 में अंततः सिवाना दुर्ग पर अधिकार कर लिया ।
1576 -77 ई0में सिवाना पर मुग़ल सेना के आधिपत्य के बाद राव चन्द्रसेन मेवाड़, सिरोही, डूंगरपुर और बांसवाड़ा आदि स्थानों पर रहने लगे लेकिन मुग़ल सेना उनका बराबर पीछा कर रही थी । सन् 1579ई0 में चंद्रसेन ने अजमेर के पहाड़ों से निकल कर सोजत के पास सरवाड़ के थाने से मुगलों को खदेड़ दिया और स्वयं सारण पर्वत क्षेत्र में जारहे ।उसी क्षेत्र में सचियाव गांव में 1580ई0 में उनका देहांत हो गया । अकबर उदयसिंह के पक्ष में था, फिर भी उदयसिंह राव चन्द्रसेन के रहते जोधपुर का राजा बनने के बावजूद भी मारवाड़ का एकछत्र शासक नहीं बन सका। अकबर ने बहुत कोशिश की कि राव चन्द्रसेन उसकी अधीनता स्वीकार कर ले, पर स्वतंत्र प्रवृति वाला राव चन्द्रसेन अकबर के मुकाबले कम साधन होने के बावजूद अपने जीवन में अकबर के आगे झुके नहीं और विद्रोह जारी रखा।चंद्रसेन और प्रताप की एक दूसरे से तुलना करना तो कठिन है ,लेकिन यह अवश्य सत्य है कि चंद्रसेन राजपूताने के उन शक्तिशाली राजाओं में से एक थे जिसने अकबर को लोहे के चने चबा दिए थे ।डिंगल काव्य में चंद्रसेन को श्रद्धान्जली इस प्रकार दी गई ---
अंडगिया तुरी ऊजला असमर
चाकर रहन न दिगीया चीत
सारै हिन्दुस्थान तना सिर
पातळ नै चंद्रसेन प्रवीत
अर्थात ---जिनके घोड़ों को शाही दाग नहीं लगा ,जो उज्जवल रहे शाही चाकरी के लिए जिनका चित्त नहीं डिगा ,ऐसे सारे भारत के शीर्ष थे राणा प्रताप और राव चंद्रसेन ।मैं ऐसे भूले विसरे नायक अदम्य साहसी योद्धा को सत् सत् नमन करता हूँ ।जय हिन्द ।जय राजपूताना ।।
लेखक --डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
मिडिया प्रभारी नार्थ इण्डिया
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (अध्यक्ष राजा दिग्विजय सिंह जी वांकानेर)
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